Wednesday, August 22, 2007

रिकामी कविता

चाहू तो तुम्हारी आवाज को दील मे समालू |
चाहू तो तुम्हारे चहरे को आंखो मे छुपालू ||
मगर चाह कर भी इस वक्त को कैसे कैद करू |
जो पल पल तुम्हे मुझसे दूर ले जा रहा है ||

हे बराय!! आधी मील्लेल त्या कागदावर कविता लिहायचो, आता गूगल च्या कृपेने मिलेल त्या वेळी ब्लॉग वर कविता टाकता येतिल।

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